देवेन्द्र चमोली आध्यात्मिक संस्थान में आपका स्वगत है
उद्देश्य एवं परिकल्पना
देवभूमी उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति, लोक भाषा को अन्तराष्ट्रीय पट्टल पर प्रदर्शित करना ।
रामायण और गीता हम भारतीयों की दो आंखे हैं इन्ही दो आंखों से हमने दुनियां को देखना सीखा है ।
ऐसे अनन्त महिमाशाली ग्रथो का उतराखण्ड की मातृ भाषा मे अनुवाद कर गढ़वाली रामायण एवं गढ़वाली भगवद्गीता को हर घर मे हर विद्यालय मे उपलब्ध कराकर वर्तमान एवं भविष्य को इन ग्रन्थों की अच्छाईयो से संस्कारित करने का उद्देश्य एवं परिकल्पना ।
Gadwali Ramayana (गढ़वाली रामायण)
जिस प्रकार गंगा में स्नान से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं, ठीक उसी प्रकार रामायण रूपी ज्ञान गंगा में प्रवेश करने से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं। रामायण लिखने - पढ़ने - सुनने -सुनाने व समझने से मनुष्य के भीतर अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट होता है और ज्ञान रूपी प्रकाश होता है। रामायण का उद्देश्य ही अज्ञान निवारण है। Read more
Gadwali BhagvadGeeta (गढ़वाली भगवद्गीता)
इस पावन ग्रंथ को स्वयं भी पढें औरों को भी पढ़ायें। इस ग्रंथ की अच्छाई स्वयं भी सुनें औरों को भी सुनायें। यह ग्रंथ पढ़ने के लिए, सुनने के लिए, एवं सुनाने के लिए ही लिखा गया है। Read more
"रामायण ज्ञान रूपी गंगा है।"
Devendra Prasad Chamoli
जिस प्रकार गंगा में स्नान से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं, ठीक उसी प्रकार रामायण रूपी ज्ञान गंगा में प्रवेश करने से तन और मन दोनो निर्मल होते हैं। इसलिए मानसकारों ने रामायण को ज्ञान गंगा कहा है। रामायण लिखने - पढ़ने - सुनने -सुनाने व समझने से मनुष्य के भीतर अज्ञानरूपी अंधकार नष्ट होता है और ज्ञान रूपी प्रकाश होता है। रामायण का उद्देश्य ही अज्ञान निवारण है।
इस ज्ञान गंगा में डुबकी लगाने से पहले रामायण अमृतवाणी को आत्मसार करें। रामायण अमृतवाणी को आत्मसार करने से रामायण का महात्म्य एवं रामायण की चौपाइयों को पढ़ने - सुनने -सुनाने व समझने में बहुत सुगमता होगी। इसी भावना से हमने गढ़वाली रामायण की रचना की है। जिसे हमने बालकाण्ड से पहले स्थान दिया है ताकि पहले रामायण की भूमिका एवं महात्म्य को आत्मसार किया जा सके।
हमें विश्वास है कि आप हमारी इस पहल को आत्मसार करके इस महान ग्रंथ की अच्छाई से संस्कारित होकर मानव समाज को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देंगे।
"इस पावन ग्रंथ को स्वयं भी पढें औरों को भी पढ़ायें। इस ग्रंथ की अच्छाई स्वयं भी सुनें औरों को भी सुनायें। यह ग्रंथ पढ़ने के लिए, सुनने के लिए, एवं सुनाने के लिए ही लिखा गया है।" Read more
